Tuesday, November 23, 2010

अंद्रेई तारकोवस्की के डायरी के पन्ने

23 joon 1977
हमारी जिन्दिगियाँ सब गलत है
एक व्यक्ति को समाज की कोई
जरूरत नही ,

समाज ही को उसकी जरूरत है.
समाज कोई आत्म सुरक्षामत
संरचना है,

यूँ कहें की एतिहासिक बचपन
का कोई रूपकिसी सहचर पशु
के विपरीत,

किसी मनुष्य को प्रकृति के और
पशु-पक्षी के और पौधो के निकट
अकेले रहते हुए भी उनके संपर्क
में रहना होता है।,

में उत्तरोतर स्पस्ट देख सकता हूँ
की हमें आपनी जीवन -पदयति में
बदलाव लाना संसोदित करना जरूरी
है .

हमें भिन्न तरीके से जीना आरम्भ
करना होगा ,लेकिन कैसे ?

सर्वप्रथम हमें आजाद और स्वतंत्र
महसूस करना होगा। विश्वाश
और प्रेम करना होगा ।

कैसे ,कहाँ?
यह है पहला मिथ्या बोध
पहला अडंगा.

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