Saturday, April 2, 2011

ये जिंदगी ऐसी ही है,


ये जिंदगी ऐसी ही है,
कभी तन्हा ,तो कभी
साथ-साथ।
कभी बेजान पत्थर की तरह,
तो कभी ऐसी शांत जो मन
को कचोती है! रह रह कर!
ये जिंदगी ऐसी ही है।

कभी खूबसूरत एहसासों से भरी,
तो कभी खाली दिये की तरह बेजान,
ठीक उस लपलपाती हुई,
बाती की तरह जो न जाने
कब बुझ जाएगी।

ये जिंदगी ऐसी ही है।
जिंदगी ऐहसासों का समंदर है,
सुःख और दुःख दोनों से भरा।
जब दुःखों का पहाड़ मन की
ऐवरेस्ट पर भारी पड़ता है,
तब जिंदगी बेजान और बेपरवाह
हो जाती है। और जब सुखं आते हैं ,
तब एक नई सोच, एक नई उमंग
और एक नई कल्पना मनुष्य में
जन्म ले लेती है।
ये जिंदगी ऐसी ही है।

जिंदगी एक पहेली है
कभी हंसाती है,
तो कभी रूलाती है।
न जाने मन सपनों
के पीछे-पीछे किस
ओर चला जाता है।
बिना रास्ता नापे,
मीलों दूर घंटों,
बस चलता ही रहता है,
किसी की याद में,
किसी के साथ में।
यह सिर्फ एहसासों का साथ होता है।
ये जिंदगी ऐसी ही है।

जिंदगी एक कठिन डगर है।
एक कड़वी सच्चाई।
एक कड़वा एहसास
इसमें मीठा है। लेकिन
किसी ने कहा था,
कि अगर शांति चाहिए,
तो इस नश्वर संसार को
छोड़ना ही पड़ेगा। क्योंकि
गमों और दुखों से,
वेदनाओं और संवेदनाओं से,
एहसासों और अलंकारों से,
भरा है संसार।
फिर भी जिंदगी चलती है
संसार में रहकर ही
इंसान जीवन के अनेकों आनंद को
लेना चाहता है लेकिन अंत में दुःख
उसकी झोली में मिल जाते हैं।
और वह मिट्टी में
यह जिंदगी ऐसी ही है।

कभी तुम्हारा कोई अपना,
किसी गैर के साथ होता है।
तुम्हे अच्छा नहीं लगता।
उसको समझाते हो, लेकिन वह
नहीं समझता।
तुम दुःखी होते हो। लेकिन क्यों?
यह तुम्हारी नहीं उसकी समस्या है।
यह जिंदगी ऐसी ही है।

खटास और मिठास से भरी।
कुछ चटपटे एहसासों से लदी।
कुछ तीखी कुछ तेज।
कहीं फीकी तो कहीं चीनी।
लेकिन चीनी हमेशा गड़बड़ करती है।
ज्यादा होन पर डायबिटीज,
और कम होने पर स्वाद खराब।
यह जिंदगी ऐसी ही है।

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