Thursday, March 24, 2011

प्रेम से अच्छी है, ईर्ष्या

मेरी तनहाई और मैं,
कैमरे को देखकर बातें
कर रही थी।

सामने खड़ा टीचर
समझा रहा था.
कि चीजों को छीनों....
मैने सोचा की खुशिया
कहां से छीनू.
रोटी,कपड़ा और
मकान सभी कुछ छीन,
लिये जाते हैं।.

तनहाई बांट ली जाती है,
आंशु पोछ लिए जाते हैं,
गम भुला दिए जाते हैं।

क्या सच में ऐसा होता है
सही में?
तनहाईयां बांटने की वस्तु है
और आंशु पोछे जा सकते हैं
क्या? और गमों को भुलाया
जा सकता है क्या?

शायद नहीं,
गमों के बवंडरों और दुःखों
के अतहा गहरे समुंद्र से बच
कर निकल पाना बड़ा ही
मुश्किल है।

लोगो को भुला पाना
तो आसान होता है
लेकिन उनकी यादों
से आजाद होना बहुत
कठिन।

जब कोई अंजान
कोई अजनबी
तुमहारी जिंदगी
में बैठता है तो शायद
बड़ी खुशियाँ होती है
उसके पास आने का
एहसास, यूं शब्दों में
बयान नहीं किया जा सकता।

क्योंकि शब्दों से सोच
सीमित हो जाती है।
धीरे-धीरे वह अजनबी
दिल के सारे तालों को
तोड़ता हुआ उस कौने
में आ धमकता है
जहां यादों का समंदर होता है।
यहां आने के बाद
वह दुनिया में किसी
के लिए बहुत ही
अजीज हो जाता है।

लेकिन इसे कम ही
लोग समझते है।
यह सोचना की
किसी के नजदीक
आने से सारी खुशियाँ
ने हमारा दामन थाम
लिया है। यह सहीं नहीं है।

उस समय जरूरत है,
यह सोचने कि आखिर
प्यार है क्या? समस्या
तब आती है जब प्रेम
वासनाओं में जकड़
जाता है।
अगर प्रेम निष्ठुर
नहीं है वह निष्काम है,
तो उसे जाहिर कैसे
किया जाए?
वह प्रेम जो दूसरों
के लिए तुमहारें
दिल में है वह बिना छुए,
या बिना बोले उस तक
कैसे पहुंचाया जाए?
और मनुष्य को प्रेम
से इतना प्रेम ही क्यों है?

न जाने क्यों?
प्रेम में धोखा है,
प्रेम में दुःख है,
प्रेम निष्ठुर है,
प्रेम अंधकार में
गिराने वाली भावना है,
प्रेम एक व्यथा है,
प्रेम एक स्वांग(ठकोसला),ढोंग है।
लेकिन प्रेम है।
इस बात से इनकार
नहीं किया जा सकता।

लेकिन इसके उलट
ईर्ष्या एक दम सच्ची।,
सूरज की तरह चमकती हुई,
अंधकार के समान पवित्र।
जैसे दिखाई देती है वैसे
ही महसूस होती है।

ईर्ष्या जिससे होती है
बड़ी ही ईमानदारी से होती है।
ईर्ष्या में कपट नहीं,
धोखा भी नहीं,
कपट से परे और छल से
कहीं दूर होती है
ईर्ष्या की परिभाषा।

ईर्ष्या जिससे भी होती है
बड़ी ईमानदारी से होती है।
ईर्ष्या इंसान को
संवेदनशील कर देती है।
और ईमानदारी का सही
ंआईना दिखा देती है।
ईर्ष्या सच्चाई के एकदम
पास वाली चीज है।

अगर किसी से करनी है
तो ईर्ष्या करों।
क्यों जिसने इस संसार
को बनाया है उसके
नाम की शुरूआत
भी ’’ई’’ से ही होती है। ईश्वर!

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